राजकुमार अग्रवाल /अटल हिन्द
अनगिनत मौतों, लाखों सेक्टर खेती बर्बाद होने, विभिन्न नई बीमारियों के आगमन और ऐसी अन्य चुनौतियों के बीच भारत में एक पावरफुल वर्ग है जो धर्म के धंधे से पैसे की उगाही करना चाहता है। यह वर्ग भारत की असली सांस्कृतिक विरासत में घृणा, नफ़रत, भेदभाव का ज़हर डालकर ‘रुहअफ़ज़ा ज़िहाद’ का भ्रम फैला रहा है, अपनी कंपनी का शर्बत बेचने के लिए विज्ञापन को भी धार्मिक घृणा का चोला पहनाकर अरबों कमाने की चाह रख रहा है।
लेकिन इन सबके बीच जलवायु परिवर्तन(Climate change) के दुष्प्रभावों के अनुरूप चरम मौसमी घटनाएँ (एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स) अपना असर लगभग प्रतिदिन दिखा रही हैं। बीते दो दिनों में आये आंधी-तूफान, बारिश, ओलावृष्टि और बिजली गिरने की घटनाओं से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में कम से कम 102 भारतीयों की मौत हो चुकी है(102 Indians dead)। इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला राज्य बिहार है, जहां इस साल विधानसभा चुनाव भी हैं लेकिन मजाल है कि सत्ता-विपक्ष का कोई भी नेता जलवायु परिवर्तन को चुनावी मुद्दा बनाकर बात करे।हर समय विदेशो में रहने वाले बीजेपी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इतने सयाने है की भारत की जनता को रोजगार,स्वास्थ्य,शिक्षा जैसी सुविधाएं देने की बजाये नाम का झगड़ालू लॉलीपॉप था कर आओ कब्र खोदें नाम का नया खेल खेलने से लगा दिया
और खुद साहब भारतीय जनता के टैक्स के पैसे से 11 साल से विदेशी दौरे पर है और मोटा भाई देश के जिस भी राज्य में जहाँ बीजेपी की सरकार नहीं है वहां गृह युद्द छेड़ रहे है देश की जनता को धर्म ,हिन्दू,मुस्लिम,खानपान ,लव जिहाद ,कोरोना जमात ,टुकड़े टुकड़े गैंग ,देश के कथित हिंदुओं को दूसरे धर्मो के लोगो से खतरा ,हिन्दू धर्म को बचाना है ,बंटेंगे तो कटेंगे ,सविधान के साथ खिलवाड़ ,दूसरे धर्मों की जमीन छीनना ,मंदिर -मस्जिद जैसे मुद्दों को जन्म देकर देश में गृह युद्द की स्थिति पैदा कर रहे है तजा उदाहरण बंगाल का ले लीजिये यहाँ साहब और मोटा भाई की पार्टी सत्ता में नहीं है इसलिए गाहे-बगाहे बंगाल को आये दिन आग की लपटों से सुलगा रहे है।
औरंगज़ेब (Aurangzeb)का शासन, कार्य और सोच आज से 300 साल पुरानी बात हो गई है, इसके बाद भी औरंगजेब की कब्र को उखाड़ फेंकने के लिए ‘कुछ लोग’ इतने आतुर दिख रहे हैं, जैसे आज के प्रशासन के पास और कोई भी यथार्थवादी काम बचा ही न हो। जलवायु परिवर्तन आज का सबसे बड़ा यथार्थ है, जो देश की खाद्य सुरक्षा और लगभग 70% ग्रामीण आबादी के भविष्य को नष्ट करने पर आमादा है, जलवायु परिवर्तन आज भारत की लगभग सारी आबादी के लिए सबसे जरूरी विषय है लेकिन उस पर चर्चा, विचार करने के लिए ना ही सरकार तैयार है और न ही वे ‘कुछ लोग’ जिनका अस्तित्व औरंगज़ेब पर टिका हुआ है।
एक धर्म विशेष को सबक सिखाने के चक्कर में बीजेपी सरकार(भारत सरकार नहीं ) संविधान प्रदत्त अपना दायित्व भूल चुकी है। सरकार को बताना चाहिए कि इस साल चरम मौसमी घटनाओं से निपटने के लिए, राज्य के लोगों की जान-माल की सुरक्षा के लिए उसके पास क्या योजना है? साथ ही यह भी कि यह योजना पिछले वर्ष की योजना से कैसे भिन्न और उन्नत है?
विशेषज्ञ और संवेदनशील, सतर्क लोग लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है और आगे भी होगी, असमय बारिश खेतों में खड़ी फसल को बर्बाद करने का काम कर रही है और इससे देश की खाद्य सुरक्षा की रीढ़ टूट सकती है। खाद्य सुरक्षा खतरे में आई तो देश भुखमरी, बीमारी और अस्थिरता की ओर लुढ़क सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक वर्ष 2024 में बिजली गिरने की वजह से 1900 लोगों की जान चली गई थी। आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2010 के बाद से जलवायु परिवर्तन के कारण बिजली गिरने की घटनाओं में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
जर्मनवॉच, बॉन (जर्मनी) स्थित एक ग़ैर-लाभकारी और ग़ैर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो 2006 से हर साल ‘क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स’ यानी सीआरआई जारी करता है। यह सूचकांक देशों को बाढ़, तूफान और हीट वेव जैसी चरम मौसमी घटनाओं से होने वाले मानवीय और आर्थिक नुकसान के आधार पर रैंक करता है। 2025 के सीआरआई में भारत को दुनिया का छठा सबसे अधिक प्रभावित देश बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के फलस्वरूप अकेले भारत में लगभग 80 हज़ार लोगों की मौत हुई है (1993-2022), जबकि इसी दौरान पूरी दुनिया में इस वजह से लगभग 7 लाख 65 हज़ार लोगों की मौत हुई है, मतलब यह कि भारत जलवायु परिवर्तन जनित वैश्विक मौतों के 10% के लिए जिम्मेदार है या कहें भुक्तभोगी है। इस दौरान भारत को लगभग 180 बिलियन डॉलर यानी 15 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा है। यदि भारत और भारतीय नहीं सचेत हुए और सरकारों से जलवायु परिवर्तन पर सवाल नहीं पूछे, दबाव नहीं डाला, इन्हें दैवीय घटनाओं की तरह देखना बंद नहीं किया तो और अधिक आर्थिक और मानवीय नुकसान उठाना पड़ेगा।
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन और क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि जलवायु परिवर्तन से 2024 में वैश्विक स्तर पर भीषण गर्मी के 41 अतिरिक्त दिन जुड़ गए। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत इसमें सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक था। यदि ग्लोबल वार्मिंग 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचती है—जो 2040 तक संभव है— तो केरल जैसे क्षेत्रों में हर साल भारी बारिश की घटनाएँ बार-बार हो सकती हैं, संभावना है कि ऐसा 2025 में ही शुरू हो जाए। वायनाड जैसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ सकती है। पूर्वोत्तर भारत जो मोदी सरकार की लचर नीतियों की वजह से बेहाल और अस्थायी होता जा रहा है, यहाँ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। सवाल यह है कि जो सरकार सैकड़ों लोगों की सीधी मौत पर ध्यान नहीं देती वो जलवायु परिवर्तन से होने होने वाली मौतों पर क्या कोई एक्शन लेगी?
लेकिन कहीं कोई ‘बलजिंदर’ है तो कहीं कोई ‘धीरेन्द्रशास्त्री’ जो भारत के लोगों की वैज्ञानिक चेतना को नष्ट कर रहे हैं और लोगों को अंधविश्वास की ओर धकेलने में लगे हैं। इसकी वजह से हर दुर्घटना की व्याख्या बस ‘होनी थी हो गई’ जैसे निम्नस्तरीय निर्बुद्धि आयामों तक सीमित रह जाती है। जबकि असलियत यह है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित जो कुछ भी घटित हो रहा है उसे लेकर 1968 से क्लब ऑफ़ रोम जैसे संगठन अपनी रिपोर्ट-‘लिमिट्स टू ग्रोथ’ (1972)- और बाद के वर्षों में UNFCCC जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन अपने वार्षिक प्रयासों के माध्यम से भविष्य की दुनिया को आगाह करते रहे हैं। 2024 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट क्लाइमेट इंडिया 2024: एन असेसमेंट ऑफ़ एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स में बताया था कि भारत ने 2024 के पहले नौ महीनों में 93% दिनों (274 में से 255 दिन) पर चरम मौसम की घटनाओं-हीट-वेव, बाढ़, बिजली गिरना और भूस्खलन- का अनुभव किया। यह आंकड़ा 2022 और 2023 के दिनों से काफी ज्यादा था। 2024 में इन घटनाओं की वजह से 3,238 लोगों की मौत हुई, 32 लाख हेक्टेयर की फसल प्रभावित हुई, और 2 लाख से अधिक घर नष्ट हो गए थे।
इसलिए लोगों को नहीं भूलना चाहिए कि भारत की संस्कृति भारत समेत पूरी पृथ्वी को बचाने का दृष्टिकोण है जिसे आज राजनैतिक-आर्थिक लाभ के लिए ‘भारत में बेचने’ और ‘भारत को बेचने’ में तब्दील कर दिया गया है।
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