क्या सचमुच हिंदू धर्म में मांसाहार की मनाही है?
भोजन का धर्म से कोई संबंध नहीं है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण-5 (National Health and Family Survey)के आँकड़ों के अनुसार, भारत में मांसाहारी भोजन करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की कम से कम दो-तिहाई आबादी प्रतिदिन, साप्ताहिक या कभी-कभार मांस खाती है। यानी, भारत की 70-80% आबादी मांसाहारी है(Indians are non-vegetarians)। कुछ राज्यों में यह आंकड़ा और भी चौंकाने वाला है। उदाहरण के लिए सर्वाधिक मांसाहार करने वाले दस राज्यों में नागालैंड में 99.8%, पश्चिम बंगाल में 99.3%, केरल में 99.1%, आंध्र प्रदेश में 98.25%, तमिलनाडु में 97.65%, ओडिशा में 97.35%, त्रिपुरा में 97%, मिजोरम में 96.5% और अरुणाचल प्रदेश में 96% आबादी मांसाहार करती है। वहीं सर्वाधिक शाकाहार की दृष्टि से राजस्थान में 74.9%, हरियाणा में 69%, गुजरात में 61%, पंजाब में 55%, मध्य प्रदेश में 50%, उत्तर प्रदेश में 47% , उत्तराखंड में 45% दिल्ली में 40%, छत्तीसगढ़ में 38% और महाराष्ट्र में 35% शाकाहारी हैं। यानी देश में बमुश्किल पाँच राज्य ही ऐसे हैं जिनमें माँसाहारियों की तादाद शाकाहारियों से कम है।
आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत में मांसाहार व्यापक है, और हिंदू समुदाय (Hinduism.)में भी मांसाहारी लोग बड़ी संख्या में हैं। फिर भी, नवरात्रि या अन्य त्योहारों के दौरान मांसाहार को ‘हिंदू-विरोधी’ साबित करने की कोशिशें तेज हो जाती हैं। बीजेपी शासित राज्यों में धार्मिक शहरों में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाता है। कुछ लोग यह धारणा बनाने की कोशिश करते हैं कि मांसाहार केवल मुस्लिम या ईसाई समुदायों तक सीमित है और यह हिंदू धर्म के खिलाफ है।
स्पष्ट है कि हिंदू धर्म में मांसाहार की कोई अनिवार्यता या निषेध नहीं है। फिर भी, कुछ लोग धर्म के नाम पर मांसाहार को निशाना बनाते हैं। यह न केवल हिंदू धर्म की विविधता पर हमला है, बल्कि मांसाहारी संप्रदायों, विशेष रूप से मुस्लिम और ईसाई समुदायों को “अन्य” साबित करने की कोशिश भी है। इसका राजनीतिक मक़सद ध्रुवीकरण और मांसाहारी हिंदुओं में अपराधबोध पैदा करना है।
भोजन का धर्म से कोई संबंध नहीं है। धर्म आचरण से जुड़ा है। शास्त्रों में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं- धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच, इंद्रिय निग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, और अक्रोध। इसमें आहार को लेकर कोई बात नहीं कही गयी है। शाकाहार का उन्माद पैदा करना या मांसाहार को धर्म-विरोधी बताना गलत है।
मांसाहार: संप्रदायों की विविधता
हिंदू धर्म में मांसाहार का कोई सर्वमान्य निषेध नहीं है। विभिन्न संप्रदायों में मांसाहार को स्वीकार किया जाता है, विशेष रूप से निम्नलिखित परंपराओं में:
शाक्त संप्रदाय: देवी उपासना पर केंद्रित इस संप्रदाय में मांसाहार और पशुबलि आम हैं। बंगाल, ओडिशा, असम, और पूर्वोत्तर भारत में मछली, बकरी, या मुर्गी का मांस देवी को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। असम के कामाख्या मंदिर में बलि की परंपरा प्रचलित है। बंगाल में मछली को “जल का फूल” कहकर पवित्र माना जाता है। शाक्त ग्रंथ जैसे देवी भागवत पुराण और कालिका पुराण में बलि और मांसाहार को धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा बताया गया है।
तांत्रिक संप्रदाय: तंत्र परंपराओं में मांसाहार साधना का हिस्सा है। “पंचमकार” (मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन) की अवधारणा में मांस और मछली को कुछ अनुष्ठानों में शामिल किया जाता है। बंगाल, बिहार, और हिमाचल प्रदेश के तांत्रिक समूहों में मांसाहार स्वीकार्य है।
शैव संप्रदाय: भगवान शिव की उपासना करने वाले इस संप्रदाय में मांसाहार पर कोई सख्त प्रतिबंध नहीं है। कश्मीर शैव और दक्षिण भारत के वीरशैव (लिंगायत) समुदायों में मांसाहार प्रचलित है। झारखंड के वैद्यनाथ धाम में शैव पंडे बलि का मांस प्रसाद के रूप में खाते हैं। कश्मीरी पंडित भी मांसाहार करते हैं।
क्षेत्रीय परंपराएं: बंगाल में हिंदू, चाहे वैष्णव हों या शाक्त, मछली और मांस को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं। मिथिला (बिहार) के मैथिल ब्राह्मण पूजा में मछली चढ़ाते और खाते हैं। पूर्वोत्तर भारत, केरल, और हिमाचल-उत्तराखंड के कुछ हिंदू समुदायों में मछली, मुर्गी, और बकरी का मांस आम है।
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