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गौशालाओं का सहयोग करना चाहिए: गौ भक्त 

गाय सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं, हम सभी को गौशालाओं का सहयोग करना चाहिए: गौ भक्त

 

 

अटल हिंद/ राहुल
सीवन, 13 अप्रैल।
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 गौ भक्त  राजीव गर्ग पटियाला, गौ भक्त फुलाराम खरकां, मां वैष्णो सेवा समिति के सदस्य व गौ भक्त राजकुमार गोयल राज व भजन सम्राट व मां वैष्णो देवी के परम भक्त नीटू चंचल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। उसे ‘गौमाता’ कहकर पूजनीय माना गया है। गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि हमारी परंपरा, संस्कृति और आस्था की जीवित प्रतीक है। उसकी सेवा करना न केवल धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक उत्थान का साधन भी है। गाय हमारे जीवन के हर क्षेत्र में किसी न किसी रूप में योगदान देती है। उन्होंने कहा किगाय का दूध संपूर्ण पोषण से भरपूर होता है। उससे बना घी, मक्खन, दही आदि स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान हैं। बच्चों की हड्डियां मजबूत हों, बुजुर्गों को ऊर्जा मिले या बीमार को जीवन शक्ति—इन सभी के लिए गाय का दूध संजीवनी है। गाय का गोबर गांवों में ईंधन के रूप में काम आता है, वही गोबर खेतों की उर्वरता बढ़ाता है और रासायनिक खाद की आवश्यकता को कम करता है।

 

मां वैष्णो सेवा समिति के सदस्य व गौ भक्त
गाय का मूत्र आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयुक्त होता है और कई रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है। यह बात आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार कर रहा है कि गाय के मूत्र और गोबर से वातावरण की शुद्धि होती है। घर में गाय होने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति बनी रहती है।
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उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि गौपालन को विशेष महत्व देते थे। उनकी तपस्थली में गायों का झुंड आत्मा की शांति का प्रतीक होता था। वे मानते थे कि गौ सेवा से सभी देवताओं की सेवा हो जाती है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी गायों को चराया और उन्हें अपना प्रियतम कहा।
गांवों की अर्थव्यवस्था आज भी गाय पर आधारित है। खेती के लिए बैल उपयोगी हैं जो गाय की ही संतान हैं। बछड़ों का पालन कर किसान कृषि कार्यों में आत्मनिर्भर बनता है। एक गाय एक पूरे परिवार की जरूरतें पूरी कर सकती है।
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उन्होंने कहा कि गौशालाएं आज समाज सेवा का प्रमुख केंद्र बनती जा रही हैं। वहां केवल गायों की सेवा ही नहीं होती, बल्कि वहां रहने वाले लोग सेवा, भक्ति और मानवता की मिसाल बनते हैं। गाय की सेवा से बच्चों में करुणा, सहिष्णुता और नैतिक मूल्यों का विकास होता है।
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त्योहारों, व्रतों और धार्मिक आयोजनों में गाय पूजन का विशेष स्थान होता है। दीपावली से लेकर गोवर्धन पूजा तक हर पर्व में गाय का पूजन किया जाता है। यह केवल धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है। उन्होंने कहा कि
आज जब आधुनिकता की दौड़ में हम प्रकृति और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, तब गाय की सेवा हमें फिर से धरती से जोड़ती है। गौहत्या जैसे अमानवीय कृत्य रोककर ही हम सच्चे अर्थों में गाय की रक्षा और सेवा कर सकते हैं।
गाय की सेवा केवल भावनाओं की बात नहीं, यह पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य संवर्धन, आर्थिक मजबूती और आत्मिक उन्नति का मार्ग है। यदि हम गाय की सेवा को अपना धर्म मान लें, तो न केवल हमारा जीवन सुधरेगा, बल्कि पूरा राष्ट्र समृद्ध और शांतिपूर्ण बनेगा।
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अंततः यही कहा जा सकता है कि गाय सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं, क्योंकि इसमें प्रकृति, समाज और आत्मा सभी का कल्याण निहित है
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